Monday, March 2, 2015

मुस्कुराना तेरा चुपके से......

 मुस्कुराना तेरा चुपके से 
 वो रुलाना तेरा चुपके से 

वो रातों में बातें , उन बातों में रातें 
वो ख्वाबों में मिलना फिर मिल के बिछड़ना 
वो नजरों ही नजरों  में  बातों  का होना 
वो जुल्फों की छाँव  में चाँद का सोना 
 दुपट्टे का तेरा वो सर से सरकना 
मुझे देखकर तेरा खुद में सिमटना 
लजाना तेरा चुपके से 
मुस्कुराना तेरा चुपके से....

निगाहों से मुझको शराबी बनाना
फिज़ा को लबों से गुलाबी  बनाना
खिज़ा का समय है फिर भी तुम खिली हो 
क़यामत हो या तुम कोई परी हो 
जिसे गा ना पाऊँ  तुम वो गजल हो 
तुम्हे क्या खबर तुम ही शामो -शहर हो 
अरे बाप रे ये जानलेवा अदाएँ
दिखाना तेरा चुपके से 
मुस्कुराना तेरा चुपके से....

वो चाँद भी बादल  के आगोश में था 
खड़ी थी वहां ये खामोश लब था 
वो हल्के कदमों से तेरा पास आना 
की जैसे नदी को सागर से मिलाना 
वो पायल की छम-छम कहर ढा रही थी 
हवाएं भी ठहरी तुम्हे देख रही थी 
वो मेहँदी का रंग कुछ ऐसा चढ़ा था 
तुम्ही थी या कोई फरिस्ता खड़ा था 
"देखो" किसी और से दिल न लगाना 
इतना तो मेरा  कहना मन जाना" 
 ये कहता 
दिवाना  तेरा चुपके से 
मुस्कुराना तेरा चुपके से .....