Monday, March 2, 2015

मुस्कुराना तेरा चुपके से......

 मुस्कुराना तेरा चुपके से 
 वो रुलाना तेरा चुपके से 

वो रातों में बातें , उन बातों में रातें 
वो ख्वाबों में मिलना फिर मिल के बिछड़ना 
वो नजरों ही नजरों  में  बातों  का होना 
वो जुल्फों की छाँव  में चाँद का सोना 
 दुपट्टे का तेरा वो सर से सरकना 
मुझे देखकर तेरा खुद में सिमटना 
लजाना तेरा चुपके से 
मुस्कुराना तेरा चुपके से....

निगाहों से मुझको शराबी बनाना
फिज़ा को लबों से गुलाबी  बनाना
खिज़ा का समय है फिर भी तुम खिली हो 
क़यामत हो या तुम कोई परी हो 
जिसे गा ना पाऊँ  तुम वो गजल हो 
तुम्हे क्या खबर तुम ही शामो -शहर हो 
अरे बाप रे ये जानलेवा अदाएँ
दिखाना तेरा चुपके से 
मुस्कुराना तेरा चुपके से....

वो चाँद भी बादल  के आगोश में था 
खड़ी थी वहां ये खामोश लब था 
वो हल्के कदमों से तेरा पास आना 
की जैसे नदी को सागर से मिलाना 
वो पायल की छम-छम कहर ढा रही थी 
हवाएं भी ठहरी तुम्हे देख रही थी 
वो मेहँदी का रंग कुछ ऐसा चढ़ा था 
तुम्ही थी या कोई फरिस्ता खड़ा था 
"देखो" किसी और से दिल न लगाना 
इतना तो मेरा  कहना मन जाना" 
 ये कहता 
दिवाना  तेरा चुपके से 
मुस्कुराना तेरा चुपके से .....

Monday, July 22, 2013

मेरे आइने में एक हिंदुस्तान…

धर्म  के  ठेकदारों  से , या  देश  के  उन  गद्दारों  से ,
मैं पूछ रहा  हूँ राजनीती  के उन सियासदाओ  से …
हम  भूखों  को  क्यूँ  तुमने  अपना  निवाला  बनाया  है ???
लोकतंत्र  के  माथे  पर  ये  कैसा  कलंक  लगाया  है ???

धर्मवाद ,क्षेत्रवाद , भाषावाद में बाँट  दिया
अपने वादों में तो तुमने “वाद” का ही तो  साथ  दिया
हिंदी  उर्दू  दोनों  ही  तो  एक  माँ  की  ही  बेटी  है
हिन्द के हिंदी पर तुमने ये कैसा अघात  दिया
भारत माँ भी सिसक रही है ,कैसा ये दिन आया है ???
लोकतंत्र  के  माथे  पर  ये  कैसा  कलंक  लगाया  है ???

पुरषों में उत्तम तुमने राम का जो अपमान  किया
एक माँ पे लांछन  लगा , अपने कौम को भी बदनाम किया
अमन चैन बस रहे हमेशा, इस्लाम का तो येही पैगाम है
तुमने  तो  अपनी  जुबां  से  बस   नफ़रत  का  ही  काम  किया

सुनो " ओवैसी "  हिंदी हैं हम ,हिंदोस्तां का नारा है
हर  बार  गले  मिलकर  हमने  नफ़रत को  ललकारा  है
राम - रहीम  की   इस  धरती  पर , ये  कैसा  विष  फैलाया  है
लोकतंत्र  के  माथे  पर  ये  कैसा  कलंक  लगाया  है ???